भाषा किसे कहते है? भाषा की प्रकृति तथा उपयोगिता क्या है?

भाषा किसे कहते है? भाषा की प्रकृति तथा उपयोगिया क्या है?

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। मनुष्य को इसका भावना सम्पन्न ह्रदय तथा विकसित मस्तिक, इसे संसार के सभी जीवों में विशिष्ट बनाती है। इन्ही शारीरिक विशेषताओं के कारण वह समय समय पर सोचता-विचारता रहता है और अपनी भावना प्रकट करना चाहता है।

मनुष्य को अपनी भावना प्रकट करने के लिए एक उचित माध्यम की आवश्यक होती है। इसके लिए आरंभ में उसने की तरह के संकेतों की सहायता ली जैसे- 

  • हाथ, सिर तथा आँखों के हिसारों से,
  • कंठ से ध्वनियाँ निकाल कर,
  • रस्सी में गांठ बांधकर,
  • चित्र बनाकर इत्यादि। 

परंतु ये सब युक्तियाँ प्रयाप्त नहीं थी। इनके द्वारा न ही यो अपनी भावना दूसरों को समझा पाया और न ही दूसरों की भावना पूर्णतया समझ पाया। इन युक्तियों के माध्यम से एक शिष्ट तथा सभ्य समाज की स्थापना संभव नहीं थी। 

भाषा

भाषा अभिव्यक्ति का, विचार-विनियम का, संप्रेषण का सर्वोत्तम साधन है। इसलिए मनुष्य ने ध्वनियों की मदद ली। ध्वनियाँ भाषा का मूल आधार है। 

यहाँ ध्वनियों से हमारा अभिप्राय उन आवाजों से जो मानव-कंठ से निकलती है तथा जिनका उच्चारण कंठ, जिह्वा, नासिका, ओठ तथा स्वर तंत्रिकाओ द्वारा होता है। इन ध्वनियों का एक निश्चित अभिप्राय होता है जो मनुष्य की भावनाओं तथा विचारों को प्रकट करती है। 

भाषा की परिभाषा 

भाषा उन ध्वनि-समूहों का भंडार है जिनकी सहायता से मनुष्य अपने भाव  व विचारों को दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाता है। 

भाषा का वर्गीकरण

भाषा को हम निम्न भागों मे विभाजित करते है –

मौखिक भाषा

भाषा का वह रूप है जिसमें मनुष्य अपने विचारों को बोल कर दूसरों तक पहुंचाता है, बोलचाल की भाषा या मौखिक भाषा कहलाता है। इसके लिए भाषा की ध्वनियों का उपयोग होता है। मौखिक भाषा के उपयोग के समय मनुष्य अपने भाव का समावेश ध्वनियों तथा इशारों में कर सकता है।

लिखित भाषा

भाषा का वह रूप जिसमें मनुष्य अपने विचारों को लिख कर दूसरों तक पहुंचाता है, लिखित भाषा कहलाता है। लिखित भाषा की सहायता से ही मनुष्य अपने विचार तथा भाव आने वाली पीढ़ी के लिए सँजो कर रख सकता है। 

लिखित भाषा में ध्वनि-चिन्हों का उपयोग किया जाता है। ध्वनियों के संकेत-वर्णों को वर्णमाला तथा लिखित रूपों के समूह को लिपि कहा जाता है। 

सांकेतिक भाषा 

साकेतिक भाषा, भाषा का वह रूप है जिसमें हम अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए विभिन्न प्रकार के संकेतों का उपयोग करते है। शारीरिक रूप से दिव्यांग व्यक्ति (बहरे तथा गूंगे) अपने विचारों को प्रकट करने के लिए साकेतिक भाषा का उपयोग करते है। 

भाषा की प्रकृति

  • भाषा अर्पित वस्तु है, इसे सीखना पड़ता है। 
  • भाषा के उपयोग से लिए अभ्यास बहुत आवश्यक है। अभ्यास से माध्यम से मनुष्य एक से ज्यादा भाषाओं को बोल व समझ सकता है। 
  • भाषा परिवर्तनशील है। भाषा स्थिर नहीं रहती। परंतु भाषा के परिवर्तन में लंबे समय अंतराल की आवश्यकता होती है। 
  • भाषा के उपयोग की एक नियमावली होती है जिसके माध्यम से भाषा उपयोग के शुद्ध या अशुद्धता में अंतर संभव है। 
  • भाषा वक्ता की संस्कृति की परिचायक होती है। 

भाषा की उपयोगिता

सामाजिक संपर्क

भाषा के उपयोग से एक सभ्य  तथा श्रेष्ठ समाज का सपना पूरा हो सकता है। इसके माध्यम से घर-परिवार, आस-पड़ोस, देश-विदेश में संपर्क बन सकता है। आज मनुष्य केवल अपनी मातृभाषा तक सीमित न रहकर अन्य भाषा का ज्ञान भी अर्जित करता है। 

ज्ञान प्राप्ति

मनुष्य को अधिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए भाषा ज्ञान आती आवश्यक है। भाषा ज्ञान के माध्यम से ही विज्ञान, व्यापार, तकनीकी में महारत हासिल कर सकता है। 

काव्यानन्द प्राप्ति

उत्तम काव्य, नाटक कथा-साहित्य पढ़कर तथा लिखकर आनंद प्राप्त कर सकते है। 

संस्कृति संरक्षण 

भाषा के उपयोग से ही हम लिख कर हमारी संस्कृति तथा सभ्यता को अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए सुरक्षित रख सकते है। आज हम भगवान राम, कृष्ण आदि के बारे में जानते है तथा उनका जीवंत अनुभव कर सकते है। 

राष्ट्रीय एकता 

एक राष्ट्र की एकता के लिए भाषा का होना आवश्यक है। भाषा ही वह कड़ी है जिसकी सहायता से विभिन्न वर्ग, समुदाय, प्रदेशों के लोगों को स्नेह-सूत्र में पिरोया जा सकता है। 

इसलिए हमारे देश भारत के संविधान में देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया है। 

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