प्रिय पाठकों, आज हम आपके लिए लेकर आये है वर्ण विचार के भेद व उच्चारण ( Distinction and Pronunciation of Varn Vichar) केे बारे में जानकारी, हिन्दी भाषा का परिचय व हिन्दी व्याकरण से सम्बंधित प्रश्न उत्तर हर एग्जाम में पूछे जाते है पिछले अध्याय मे हमने हिन्दी व्याकरण के प्रकार पढे थे, आज हम हिन्दी व्याकरण के पहला भाग वर्ण विचार के भेद व उच्चारण ( Distinction and Pronunciation of Varn Vichar) के बारे में विस्तारपूर्वक लेख के बारे मे जानेंगे
वर्ण विचार
वह छोटी से छोटी ध्वनि जिसे विभाजित नही किया जा सकता अर्थात भाषा की छोटी इकाई ध्वनि है जिसे वर्ण कहते है हिन्दी वर्णमाला में 11 स्वर व 39(33+6) व्यजन है कुल मिलाकर हिन्दी मे 52 वर्ण है इसके दो भेद है: स्वर और व्यंजन
स्वर के भेद व उच्चारण
जिन वर्णों के उच्चारण करते समय हवा या गति बिना किसी रुकावट के मुंह या मुख से निकलती है उन्हें स्वर कहा जाता है कुल स्वरों की संख्या 11 है स्वर के तीन भेद होते है
हृस्व स्वर
जिन वर्णों के उच्चारण में कम से जम एक मात्रा का समय लगता हो, उन्हें हृस्व स्वर कहा जाता है इन्हें मूल स्वर भी कहते है जैसे: अ, इ उ, ऋ
दीर्ध स्वर
जिन वर्णों के उच्चारण में हृस्व स्वर से दोगुना समय अर्थात दो मात्रा का समय लगता हो उन्हें दीर्घ या सन्धि स्वर कहते है इनकी संख्या 7 है आ, ई, ऊ, ए, ऐ ओ, औ।
प्लुत स्वर
जिन वर्णो के उच्चारण में हृस्व व दीर्घ स्वर से ज्यादा समय लगता हो उन्हें प्लुत स्वर कहा जाता है जैसे: ओउम लेकिन प्लुत स्वर को हिंदी में स्वरों से बाहर कर दिया गया है
स्वरों की मात्राएं
स्वर | मात्रा |
---|---|
अ | – |
आ | ा |
इ | ि |
ई | ी |
ऋ | ृ |
उ | ु |
ऊ | ू |
ए | े |
ऐ | ै |
ओ | ो |
औ | ौ |
व्यंजन
जिन वर्णो के उच्चारण में हवा या गति रुकावट के साथ मुख से निकलती हो उन्हें व्यंजन कहा जाता है इनकी संख्या 39 है लेकिन हिन्दी वर्णमाला में मूल व्यंजन 33 है इन्हें 3 भागो में विभाजित किया जाता है यहाँ हम व्यंजन के भेद व उच्चारण के बारे मे पढ़ेंगे
स्पर्श व्यंजन
जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय जीभ मुह के किसी भाग जैसे: कंठ, तालु, दांत, मूर्धा और ओष्ठ आदि को स्पर्श करती है उन्हें स्पर्श व्यंजन कहा जाता है इनकी संख्या 25 है – क से म तक और इन्हे 5 भागों मे बाँटा जाता है
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अन्तस्थ व्यंजन
जिन व्यंजनों कक उच्चारण करते समय जीभ मुह के किसी भाग को पूर्व रूप से स्पर्श नही करती ये व्यंजन स्पर्श व्यंजन व ऊष्म व्यंजन में मध्य में स्थित होते है इनकी संख्या 4 है- य र ल व
ऊष्म व्यंजन
जिन व्यंजनों में एक विशेष प्रकार का घर्षण होता है जिसमे हवा मुँह के विभिन्न भागों से टकराये और साँस में गर्मी पैदा कर दे, उन्हें उष्म व्यंजन कहते है इनकी संख्या भी 4 है- श, ष, स, ह
अन्य व्यंजन के भेद व उच्चारण
सयुंक्त व्यंजन
ऐसे व्यंजन जो दो या दो से अधिक व्यंजनों के मेल से बनते हैं, उन्हे सयुंक्त व्यंजन कहते है इनकी संख्या 4 होती है क्ष, त्र, ज्ञ, श्र उदहारण के लिए:
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उतिक्षप्त व्यंजन
जिन व्यंजनों के उच्चारण मे जीभ का अग्र भाग तालु को झटके के साथ स्पर्श करके हट जाता है उसे उतिक्षप्त व्यंजन कहते है इनकी संख्या 2 होती है: ड़ ढ़
द्वित्व व्यंजन
जब एक ही वर्ण दो बार मिलकर प्रयोग है उसे द्वित्व व्यंजन कहते हैं, जैसे- गन्ना में न और कच्चा में च का द्वित्व प्रयोग है।
संयुक्ताक्षर
जब एक स्वर रहित व्यंजन अन्य स्वर सहित व्यंजन से मिलता है, तब वह संयुक्ताक्षर कहलाता हैं, जैसे- क् + त = क्त = संयुक्त
स् + थ = स्थ = स्थान
आयोगवाह के भेद व उच्चारण
हिंदी वर्णमाला में ऐसे वर्ण जिनकी गिनती न तो स्वरों में और न ही व्यंजनों में की जाती हैं। उन्हें अयोगवाह कहते हैं इनकी संख्या 2 है अं, अः , इनका प्रयोग स्वरों के बाद और व्यंजनों से पहले होता है। अं को अनुस्वार तथा अः को विसर्ग कहा जाता है अयोगवाह चार प्रकार के होते हैं-
(1) अनुनासिक (ँ)
(2) अनुस्वार (ं)
(3) विसर्ग (ः)
(4) निरनुनासिक
अनुनासिक (ँ)
जिन वर्णों के उच्चारण में हवा, नाक व मुख दोनों से निकलती है उसे अनुनासिक कहते हैं जैसे- गाँव, दाँत, आँगन, साँचा इत्यादि
अनुस्वार (ं)
जिस वर्ण के उच्चारण में हवा, केवल नाक से ही निकलती है उसे अनुस्वार कहते हैं जैसे- अंगूर, अंगद, कंकन
विसर्ग (ः)
जिनके उच्चारण में ‘ह’ ध्वनि उतपन्न हो उसे विसर्ग कहते हैं जैसे- मनःकामना, पयःपान, अतः, स्वतः, दुःख इत्यादि
निरनुनासिक
जो केवल मुँह से बोले जाते है उन वर्णों को निरनुनासिक कहते हैं।
जैसे- इधर, उधर, आप, अपना, घर इत्यादि।
श्वास के आधार पर वर्ण
श्वास के आधार पर वर्ण के 2 भेद होते है अल्पप्राण व महाप्राण
अल्पप्राण
जिन ध्वनियों के उच्चारण में फेफड़ो से निकलने वाली वायु की मात्रा कम होती है उसे अल्पप्राण कहते है प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा और पांचवा वर्ण व अंतस्थ व्यंजन और सभी स्वर, जैसे क, ग, प, फ़, ब, म आदि
महाप्राण
जिन ध्वनियों के उच्चारण में फेफड़ो से निकलने वाली वायु की मात्रा अधिक होती है प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा वर्ण और ऊष्म व्यंजन जैसे ख, घ, छ, ढ़ श, स, ह आदि
कंपन के आधार पर वर्ण
अघोष
जिन वर्णो के उच्चारण कंपन नहीं होता और प्रत्येक वर्ग का पहला व दूसरा वर्ण जैसे क, ख, ठ, प आदि
सघोष
जिन वर्णों के उच्चारण में कंपन होता है और प्रत्येक वर्ग का तीसरा, चौथा, पांचवा वर्ण जैसे ग, घ, ण द, ध और सभी स्वर आदि
वर्णों का उच्चारण स्थान
उच्चारण स्थान | वर्ण | वर्ण का नाम |
---|---|---|
कंठ | कवर्ग ( क ख ग घ ङ) ह, अ, आ | कंठय |
तालु | चवर्ग( च, छ, ज, झ, ) य, श, ई, इ | तालव्य |
मूर्धा | टवर्ग( ट, ठ, ड ढ ण) ष, ऋ ड़ ढ़ | मूर्धन्य |
दन्त | तवर्ग( त, थ, ध, न) | दन्त्य |
ओष्ठ | पवर्ग ( प फ, ब , भ, म) उ, ऊ | ओष्ठ्य |
कंठ तालु | ए, ऐ | कंठ तालव्य |
कंठ ओष्ठ | ओ, औ | कंठ ओष्ठ्य |
दन्त ओष्ठ | व, फ | दन्त ओष्ठ्य |
वतर्स | र, ल, स, ज | वत्सर्य |
नासिका | ङ, ण, न, म | नासिक्य |
उच्चारण के आधार पर व्यंजन
स्पर्शी व्यंजन
फेफड़ों से छोड़ी हुई वायु वागयंत्र से टकरा कर बाहर निकलती है जैसे
- क ख ग घ
- ट ठ ड ढ
- त थ द ध
- प फ ब भ
संघर्षी व्यंजन
जिन के उच्चारण मे वायु घर्षण करके बाहर निकलती है और जिनका मार्ग छोटा होता है इनकी संख्या 4 होती है जैसे: (श, ष, स, ह)
स्पर्श संघर्षी व्यंजन
उच्चारण करते समय अधिक लगता है इनकी संख्या 4 होती है जैसे: (च, छ, ज, झ)
नासिक्य या अनुनासिक व्यंजन
जिनका उच्चारण नाक से निकलता है इनकी संख्या 5 होती है जैसे: (ङ, ञ, ण, न, म)
ताड़नजात या द्विगुणित या उत्क्षिप्त व्यंजन
जिनके उच्चारण मे जीभ झटके से नीचे गिरती है इनकी संख्या 2 होती है जैसे: (ड़, ढ़)
पार्श्विक व्यंजन
जिनके उच्चारण मे वायु जिंगह के दोनों और से बाहर निकलती है इनकी संख्या 1 होती है जैसे: (ल)
प्रकम्पित / लुंठित व्यंजन
जिनके उच्चारण मे जीभ को तीन बार कंपन करना पड़े, इनकी संख्या 1 होती है जैसे: (र)
सँघर्षहीन / अर्द्धस्वर व्यंजन
जिनके उच्चारण मे वायु बिना संघर्ष के बाहर निकले, इनकी संख्या 2 होती है जैसे (य, व)
वर्ण विचार के भेद व उच्चारण
देखे हिन्दी व्याकरण की जानकारी
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