प्रिय पाठकों, इस लेख में हम आपके लिए लेकर आए है हरियाणा के लोक नृत्य व कला का प्रदर्शन की संक्षिप्त जानकारी, दोस्तों हरियाणा सामान्य ज्ञान के इस अध्याय को अंत तक अवश्य पढ़े व विभिन्न परीक्षाओं के लिए स्वयं को तैयार करें। यदि कोई अन्य महत्वपूर्ण जानकारी, जो आप हमारे पाठकों के साथ सांझा करना चाहते है तो नीचे कॉमेंट बॉक्स में जरूर लिखे।
हरियाणा राज्य मे भिन्न भिन्न संस्कृति के लोग रहते है जो अपनी कला का प्रदर्शन करते दिखाई देते है। हरियाणा में उत्सव, त्यौहार बड़े धूम धाम से लोक नृत्य के साथ मनाए जाते है और एक अनोखे अंदाज मे अपनी कला का प्रदर्शन करते है। हरियाणा के लोक नृत्य, कला व संस्कृति का अलग ही विशेष स्थान होता है क्योंकि यहाँ के अमीर, गरीब, अनपढ आदि व्यक्ति अपनी कला को अपने हिसाब से सँजोये हुए है। हरियाणा के लोक नृत्य पूरे भारत देश मे सबसे अलग है और यहाँ की संस्कृति भारत के नक्शे में हरियाणा को विशेष स्थान दिलाती है। हरियाणा के लोक नृत्य व लोकगीत यहाँ के सांस्कृतिक जीवन को प्रदर्शित करते है।
हरियाणा के लोक नृत्य
छठी नृत्य
यह नृत्य बच्चे के जन्म होने के छठे दिन महिलाओ द्वारा किया जाता है यह नृत्य रात मे किया जाता है। भारत मे भी कई अन्य जगह पर भी यह नृत्य किया जाता है। इस नृत्य के अंत मे उपस्थित हुए लोगों को गेहूं व चना से बनी बाकलि बांटी जाती है।
खेड़ा नृत्य
यह नृत्य खुशी की बजाए, गम मे किया जाने वाला नृत्य है यदि परिवार मे किसी बुजर्ग की मृत्यु हो जाती है तब यह नृत्य किया जाता है।
घूमर नृत्य
यह राजस्थान राज्य का मूल नृत्य है यह हरियाणा के कुछ जिलों मे बहुत प्रसिद्ध है जो राजस्थान की सीमा से लगते है। इसमे महिलाए गीत गाती है और साथ मे नाचते हुए गोल-गोल चक्कर लगाती है और जोड़ों के रूप मे नाचती है।
यह नृत्य ज्यादातर होली, तीज आदि त्यौहारों व विवाह के अवसर पर किया जाने वाला रोचक नृत्य है। यह नृत्य नववधू के आगमन मे रात भर महिलाओ द्वारा किया जाता है जब सारे पुरुष बारात मे गए हुए होते है। यह नृत्य हरियाणा के मध्य जिलों मे बहुत लोकप्रिय है।
झूमर नृत्य
यह नृत्य हरियाणा के लोकप्रिय नृत्य मे से एक है
झूमर का मतलब है-आभूषण, विवाहित महिलाये अपने माथे पर यह आभूषण धारण करके जोड़ा बनाकर एक दूसरे के साथ नाचती है। ये महिलाये औढणी, कुर्ता आदि पूर्ण रूप से हरियाणवी वस्त्र धारण करके ढोलक के साथ नाचती है। यह पंजाब के गिददे से मिलता-जुलता नृत्य है इसे हरियाणवी गिद्दा भी कहते है।
विवाह नृत्य
घोड़ी नृत्य यह नृत्य विवाह के अवसर तथा घुड़चड़ी के अवसर पर किया जाता है, इस नृत्य मे गत्ते या कागच का मुखौटा पुरुषों द्वारा पहनकर किया जाता है यह राजस्थान का लोकप्रिय नृत्य है।
सुहाग नृत्य
यह भी विवाह के अवसर पर दुल्हन के सगे-संबंधी द्वारा किया जाता है।
धमाल नृत्य
पुरुषों का यह नृत्य बहुत लोकप्रिय है। किसानों द्वारा जब उनकी फसल कटने के लिए तैयार होती है तब यह नृत्य किया जाता है।
यह गुरुग्राम, रेवाड़ी, झज्जर, महेंद्रगढ़ के आस पास अहिरवाल क्षेत्र मे बहुत प्रसिद्ध है। यह नृत्य महाभारत के समय से चला आ रहा है। फाल्गुनी की चाँदनी रात मे इस नृत्य को खूब किया जाता है।
फाग नृत्य
यह नृत्य फाल्गुन के महीने व होली के 10-12 दिन पहले किया जाता है।
इसमे महिलाये रंगीन वस्त्र व पुरुष रंगीन पगड़ी धारण करके किया जाता है कहा जाता है जब किसान फसल घर लेके आता है तब यह नृत्य किया जाता है। कई जगहों पर पुरुष भी इस नृत्य को करते है और महिलाओ द्वारा भी इस नृत्य को रात मे किया जाता है।
रासलीला नृत्य
यह नृत्य भी बेहद लोकप्रिय है इसमे भगवान श्री कृष्ण व गोपियाँ से संबंधित नृत्य नाटक के रूप मे प्रस्तुतीकरण है।
जन्माष्टमी के अवसर पर भी यह नृत्य कर लिया जाता है, ज्यादातर यह फरीदाबाद, होडल, पलवल आदि इलाकों मे किया जाता है यह दो प्रकार का होता है
तांडव
पुरुषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य
लास्य
महिलाओ द्वारा किया जाने वाला नृत्य
लूर नृत्य
यह नृत्य हरियाणा के बांगर इलाकों मे लड़कियों द्वारा किया जाता है। होली का त्यौहार, बसंत के मौसम, रबी की फसल के समय यह नृत्य किया जाता है। इस नृत्य मे लड़किया घाघरा, कुर्ता, चुंदरी पहनकर नाचती है।
पुरुष इस यह नृत्य को नई देख सकते।
डफ नृत्य
इस नृत्य को ढोल नृत्य के नाम से भी जाना जाता है। इस नृत्य मे वीर रस व शृंगार रस प्रधान है। बसंत के मौसम मे यह नृत्य किया जाता जाता है। पहली बार 1969 मे गणतंत्र दिवस के समारोह मे यह नृत्य किया गया था
गोगा नृत्य
इसे गुगा नृत्य भी कहा जाता है। यह नृत्य नवमी के पहले और नवमी वाले दिन पुरुषों द्वारा किया जाता है। ज़्यादात्तर हिन्दू व मुसलमान लोगों द्वारा गोगा पीर की पूजा की जाती है। इस नृत्य मे गोगा पीर के भक्त व संत खूद को जंजीरों से पीटते है। इस दिन ढोल, नगाड़ा, चिमटा, थाली आदि के साथ नृत्य करते है।
राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के गोगा मेडी में गोगा पीर का बहुत बड़ा मेला लगता है।
रतवाई नृत्य
मेवात जिले मे यह नृत्य सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। यह महिलाओ व पुरुषों द्वारा ढोल व मंजीरों के साथ नृत्य किया जाता है।
झिलका व महेंद्रगढ़ इलाकों मे भी यह नृत्य प्रसिद्ध है।
सांग नृत्य
ऐसा माना जाता है कि यह नृत्य पहली बार 1750 मे विकसित हुआ था। यह नृत्य हरियाणा राज्य के लोक नृत्य मे से एक है। यह वीर रस प्रधान नृत्य है और इस नृत्य से हरियाणा की कला व संस्कृति की झलक उभर कर सामने आती है
इस नृत्य मे पुरुष, महिलाओ के वस्त्र पहनकर तथा महिलाओ के रूप मे सज धज कर नाचते है। यह नृत्य मुख्य रूप मे धार्मिक गीतों पर खुले स्थानों व चौपालों मे किया जाता है।
कुछ अन्य हरियाणा के लोक नृत्य
- डमरू नृत्य: महाशिवरात्रि के दिन यह नृत्य किया जाता है और इस दिन डमरू बजा कर लोग नाचते है।
- गणगौर नृत्य: यह हिसार व फतेहाबाद क्षेत्र मे बेहद लोकप्रिय है। इस नृत्य मे महिलाये देवी पार्वती की पूजा करती है।
- बीन-बाँसुरी नृत्य: यह नृत्य लगभग पूरे हरियाणा प्रदेश मे किया जाता है, घड़े पर रबड़ बांध कर व किसी प्रसिद्ध गानों की धुन निकाली जाती है।
- तीज नृत्य: यह नृत्य तीज त्योहार के अवसर पर किया जाता है और सावन माह मे महिलाये झूले जुलती है और एककठे होकर नाचती है।